Dhakad Maheshwari
ANKUR MAHESH GUPTA (Gattani)
Monday 29 August, 2011
Sunday 28 August, 2011
002 hello.......
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जय महेश
में अंकुर महेश गुप्ता एक प्रयास धाकड़ महेश्वरी समाज के लिए कर रहा हु जिसके द्वारा सभी समाज बंधू एक दुसरे से जुड़ सकते हे …..
आप सभी जानते हे की आज के समय में इन्टरनेट सबसे अच्छा माध्यम हे जिससे हम कभी भी कही भी जनकरीया प्राप्त कर सकते हे ……
में एक blog बना रहा हु जिसके द्वारा आप कभी भी धाकड़ माहेश्वरी समाज की जानकारी प्राप्त कर सकते हे …..
पर इस blog में सभी जानकारी दे सकू इस के लिए मुझे आप सभी समाज बंधुओ की जरुरत होगी …..
में इस ब्लॉग के द्वारा बहुत सी जनकरीया दे सकता हु जैसे की – होने बाली समाज की सभा , त्योहौर , चुनाव , तजा खबर , सम्मेलन , सामाजिक प्रयास आदि …..
पर यह सब में आपकी मदत लगेगी ……
आप मुझे e-mail के द्वारा जानकारी दे सकते हे …..ankur.0733@yahoo.in
और हा ….. आप सब से निवेदन हे की please मुझसे कोई गलती हो जाये तो कृपया मुझे छमा करे ….. और mail के द्वारा मुझे सही जानकारी , कॉमेंट्स , राय जरूर दे ताकि में आपनी गलती सुधार सकू …..
Ok bye ……………………..जय महेश
Saturday 27 August, 2011
श्री माहेश्वरी वंश उत्पत्ति
जय महेश ……
सर्वप्रथम भगवान श्री महेश को नमन करता हु ……..
आज धाकड़ माहेश्वरी समाज में बहुत से लोग है जो नहीं जानते की माहेश्वरी समाज से धाकड़ माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति कैसे हुई ……
हम धाकड़ माहेश्वरी हे हम सभी को पता होना चाहिए की धाकड़ माहेश्वरी का इतिहास क्या हैं …..?
इतिहास साक्षी हे की सेकड़ो वर्ष पूर्व राजस्थान के डीडवाना के राजा द्वारा जब हमारा स्वाभिमान आहत हुआ तो हमने वह राज्य ही छोड़ दिया और गुजरात के धाकगड़ व फिर मध्य भारत के कई स्थानों पर पड़ाव डाला ……….
श्री माहेश्वरी वंशउत्पत्ति
गाव खड़ेला में खड्गल सेन राजा राज्य करता था l इसके राज्य में सारी प्रजा सुख और शांती से रहती थी l राजा धर्मावतार और प्रजाप्रेमी था , परन्तु राजा का कोई पुत्र नहीं था l राजा ने मंत्रियो से परामर्श कर पुत्रेस्ठी यज्ञ कराया l ऋषियों ने आशीर्वाद दिया और साथ-साथ यह भी कहा की तुम्हारा पुत्र बहुत पराक्रमी और चक्रवर्ती होगा पर उसे 16 साल की उम्र तक उत्तर दिशा की ओर न जाने देना l राजा ने पुत्र जन्म उत्सव बहुत ही हर्ष उल्लास से मनाया l ज्योतिषियों ने उसका नाम सुजानसेन रखा l सुजान सेन बहुत ही प्रखर बुद्धि का व समझदार निकला , थोड़े ही समय में वह विद्या और शास्त्र विद्या में आगे बड़ने लगा l
देवयोग से जैन मुनि खड़ेला नगर आए और सुजान कुवर ने जैन धर्म की शिक्षा लेकर उसका प्रचार प्रसार शुरू कर दिया l शिव व वैष्णव मंदिर तुडवा कर जैन मंदिर बनवाए , इससे सरे राज्य में जैन धर्मं का बोलबाला हो गया l
एक दिन राजकुवर 72 उमरावो को लेकर शिकार करने जंगल में उत्तर दिशा की और ही गया l सूर्य कुंड के पास जाकर देखा की वहा 6 ऋषि यज्ञ कर रहे थे ,वेद ध्वनि बोल रहे थे ,यह देख वह आग बगुला हो गया और क्रोधित होकर बोला इस दिशा में मुनि यज्ञ करते हे इसलिए पिताजी मुझे इधर आने से रोकते थे l उसी समय उमरावों को आदेश दिया की यज्ञ विध्वंस कर दो और यज्ञ सामग्री नस्ट कर दो l
इससे ऋषि भी क्रोध में आ गए और उन्होंने श्राप दिया की सब पत्थर बन जाओ l श्राप देते ही राजकुवर सहित 72 उमराव पत्थर बन गए
जब यह समाचर राजा खड्गल सेन ने सुना तो अपने प्राण तज दिए l रजा के साथ 16 रानिया सती हुई
राजकुवर की कुवरानी चन्द्रावती उमरावों की स्त्रियों को साथ लेकर ऋषियो की शरण में गई और श्राप वापस लेने की विनती की तब ऋषियो ने उन्हें बताया की हम श्राप दे चुके हे तुम भगवान गोरीशंकर की आराधना करो l यहाँ निकट ही एक गुफा हे जहा जाकर भगवान महेश का अष्टाक्षर मंत्र का जाप करो l भगवान की कृपा से वह पुनः शुद्ध बुद्धि व चेतन्य हो जायेंगे l राजकुवारानी सारी स्त्रियों सहित गुफा में गई और तपस्या में लीन हो गई l
भगवान महेश उनकी तपस्या से प्रस्सन होकर वहा आये ,पार्वती जी ने इन जडत्व मूर्तियों के बारे में भगवान से चर्चा आरम्भ की तो राज्कुवरानी ने आकर पार्वती जी के चरणों में प्रणाम किया l पार्वतीजी ने आशीर्वाद दिया की सोभाग्यबती हो , तुम्हारे पति का मुख देखो l इस पर राज्कुवरानी ने कहा हमारे पति तो ऋषियों के श्राप से पत्थरवत हो गए है अतः आप इनका श्राप मोचन करो l पार्वतीजी ने भगवान से प्रार्थना की और फिर भगवान महेश ने उन्हें चेतन में ला दिया l चेतन अवस्था में आते ही उन्होंने पार्वती -महेश को घेर लिया l इस पर भगवान महेश ने कहा छमावान बनो और छत्रित्व छोड़ कर वैश्य वर्ण धारण करो l 72 उमरावों ने इसे स्वीकार किया पर हाथो से हथिहार नहीं छुटे l इस पर भगवान महेश ने कहा की सूर्य कुंड में स्नान करो ऐसा करते ही उनके हथिहार पानी में गल गए उसी दिन से लोहा गल (लोहागर) हो गया l स्नान कर भगवान महेश से प्रार्थ्रना करने लगे
फिर भगवान महेश ने कहा की आज से तुम्हारी जाती पर मेरी छाप रहेगी यानि “माहेश्वरी ’’ कहलाओगे और तुम व्यापार करो इसमें फुलोगे -फलोगे l
अब राजकुवर व उमरावों ने स्त्रियों को स्वीकार नहीं किया कहा की हम तो वैश्य बन गए है पर ये अभी छतरानिया हे हमारा पुनर्जन्म हो चूका हे हम इन्हें कैसे स्वीकार करे l तब माता पार्वती ने कहा तुम सभी स्त्री -पुरुष हमारी परिक्रमा करो जो जिसकी पत्नी हे अपने आप गठबंधन हो जायेगा l इसपर सब ने परिक्रमा की l उस दिन से महेश्वरी बनने की बात याद रहे इसलिए चार फेरे बाहर के लिए जाते हे l
जिस दिन भगवान महेश ने वरदान दिया उस दिन युधिष्टिर संवत 9 जेस्ट शुक्ल नवमी थी l तभी से माहेश्वरी समाज आज तक “ महेश नवमी ’’ का त्यौहार बहुत धूम धाम से मनाता आ रहा हे …..
ऋषियों ने आकर भगवान से अनुग्रह किया की प्रभु इन्होने हमारे यज्ञ को विध्वंस किया और आपने इन्हें श्राप मोचन कर दिया इस पर भनवान ने कहा आप बाहर यजमान बनालो ये तुम्हे गुरु मानेंगे हर समय यथा शक्ति द्रव्य देते रहेंगे l
फिर सुजान कुवर को कहा की तुम इनकी वंशावली रखो ये तुम्हे अपना जागा मानेंगे l
जो 72 उमराव थे उनके नाम पर एक -एक जाती बनी जो 72 खाप कहलाई l फिर एक -एक खाप में कई नख हो गए जो कम के कारण गाव व बुजुर्गो के नाम बन गए हे l
NOTE :- यह तथ्य मेने धाकड़ माहेश्वरी समाज की ही पुरानी बुक में से बताया हे l यदि किसी समाज बंधू को इसमें त्रुटी दिखाई पड़ती हे तो में छमा चाहता हु और हा please मुझे e-mail करे उसमे सही जानकारी लिख दे जिससे में इसे सुधार सकू …
धाकड़ महेश्वरी का इतिहास
धाकड़ माहेश्वरी
का इतिहास
माहेश्वरीओ की उत्तपत्ति के जो भी तथ्य उपलब्ध हे वे श्री शिवकरण जी दरक द्वारा लिखित इतिहास कल्पद्रुम महेश्वरी कुल भूषण नमक ग्रन्थ से उद्धृत किये गए हे l वर्तमान में महेश्वरी समाज इसी को प्रमाणिक मानता हे l
किवदंती हे की आज से लगभग 2500-2600 वर्ष पूर्व 72 खापो के माहेश्वरी मारवाड़ (डीडवाना) में निवास करते थे l अपने धर्माचरण में रहते हुए ईमानदारी पूर्वक व्यवसाय करते थे एवं सुखी जीवन बिता रहे थे l किन्तु तत्कालीन रजा जो अधर्मी था किसी कारण महेश्वरी समाज से कुपित हो गया एवं समाज के व्यक्तिओ को कई प्रकार से यातनाये देने लगा तथा व्यवसाय एवं धर्म में बाधाये डालने लगा l जब अत्त्याचार बड़ गया तब समस्त माहेश्वरियो ने दुखी मन से सर्वसम्मति से उस नगर को छोड़ अन्य स्थान पर बसने का प्रस्ताव पारित किया l
अब इन्ही 72 खापो में से 20 खाप के माहेश्वरी परिवार अपना धनधान्य से पूरित गृह त्याग कर धकगड़ (गुजरात) में जाकर बस गए l वहा का राजा दयालु प्रजापालक और व्यापारियों के प्रति सम्मान रखने वाला था l इन्ही गुणों से प्रभावित हो कर और 12 खापो के महेश्वरी भी वहा आकार बस गए l
इस प्रकार 32 खापो के माहेश्वरी धकगड़ (गुजरात) में बस गए और व्यापार करने लगे l
ईमानदारी की निति पर चलते हुए इन्हें अपार सम्रद्धि प्राप्त हुई और धकगड़ के माहेश्वरियो की वचनबद्धता उनकी पहचान बन गई तथा तभी से 32 खापो के माहेश्वरी धाकड़ महेश्वरी कहलाने लगे....
धकगड़ के माहेश्वरियो का भोजन शुध्य सात्विक था l तथा रहन सहन उत्तम था l उच्च कुल की मर्यादानुसार वैवाहिक सम्बन्ध निश्चित करने लगे l
कालांतर में आवागमन की सुविधा के आभाव में में मारवाड़ के डीडू माहेश्वरियो से इनका सम्बन्ध विच्छेद होता गया और धाकड़ माहेश्वरी कहलाने लगे...
अखिल भारतीय माहेश्वरी सभा के अनुसार माहेश्वरी अपने नाम के आगे महेश्वरी न लिखते हुए अपना गोत्र लिखने लगे l
समय व परिस्थिति के वशीभूत होकर धकगड़ के माहेश्वरियो को धकगड़ भी छोडना पड़ा और मध्य भारत में आष्टा के पास अवन्तिपुर बडोदिया ग्राम में विक्रम संवत 1200 के आस -पास आज से लगभग 810 वर्ष पूर्व , आकार बस गए l वह उनके द्वरा निर्मित भगवान शंकर का मंदिर जिसका निर्माण संवत 1262 में हुआ जो आज भी विद्यमान हे l एवं अतीत की यादो को ताज़ा करता हे l पुनः अन्य मध्य भारत के कई स्थानों पर जाकर व्यवसाय करने लगे l
आज के समय में धाकड़ माहेश्वरी मालवा , निमाड़ अर्थात खंडवा , इंदौर , सीहोर , भोपाल , उज्जैन , देवास , राजगड , साजापुर , रायपुर आदि जिलो में तथा अन्य स्थानों पर निवास कर रहे हे ..
Friday 26 August, 2011
001 गोत्र ( खाप ) धाकड़ माहेश्वरी समाज
धाकड़ माहेश्वरी
में विध्यमान खाप
- (1) काबरा (17) बाहेती
- (2) कासट (18) भटटड
- (3) नागोरी (19) भंसाली
- (4) गगरानी (20) चांडक
- (5) गट्टानी ( गूगले) (21) मोहता
- (6) मनिहार (मानिवार) (22) मूंदड़ा
- (7) जाखेटिया (23) मालपानी
- (8) झवर (24) राठी
- (9) टुवानी (25) कुलुम
- (10) डागा (26) लाहोटी
- (11) दाड (27) सारडा
- (12) तापडिया (बघेरवाल ) (28) सोमानी
- (13) धारवा (29) धिवा
- (14) धारवाड़ (30) तोसनिवाल
- (15) लाड (लड्डा) (31) मौरी
- (16) बजाज (करोड़ी ) (32) सौकोंया
काकड़ वाल्या माहेश्वरी
माहेश्वरियो के 72 गोत्र में से 15 खाप (गोत्र ) के माहेश्वरी परिवार अलग होकर ग्राम काकरोली राजिस्थान में बस गए और इन्होने भी घर त्याग करने के पहले संकल्प किया की वे हाथी दांत का चुडा व मोतीचूर की चुन्धरी कम में नहीं लावेंगे अतः आज भी काकड़ वाल्या महेश्वरी शादी में इन चीजो का व्यव्हार नहीं करते l
इनका रहन सहन शुद्ध सात्विक व उत्तम हे तथा इनका व्यव्हार धाकड़ महेश्वरी ओ से मिलता जुलता हे इसी कारण धाकड़ माहेश्वरी और काकड़ वाल्या माहेश्वरी में परस्पर रोटी तथा बेटी व्यावहार है l
1- ढलवानी 2- नानाव्थ्या
3- पलानवंश 4 - सांडल
5- कांकाणी (गहलोद ) 6- पिसन्या
7- तापंडे (पण्डे ) 8- लिलाव्यथ्या
5- कांकाणी (गहलोद ) 6- पिसन्या
7- तापंडे (पण्डे ) 8- लिलाव्यथ्या
9- सोपसिया 10-खराडा
11- वेद 12- जुलाहा
13- दीलोदिया 14- मोरी
15- लोधिवाल
पुरानी माहेश्वरी समाज की बुक से पता चला हे की आज तक उपरोक्त सभी खाप (गोत्र ) में से आज कुछ खाप विलुप्त हो गई हे l
NOTE :- यह तथ्य मेने धाकड़ माहेश्वरी समाज की ही पुरानी बुक में से बताया हे l यदि किसी समाज बंधू को इसमें त्रुटी दिखाई पड़ती हे तो में छमा चाहता हु और हा please मुझे e-mail करे उसमे सही जानकारी लिख दे जिससे में इसे सुधार सकू …
Thursday 25 August, 2011
सम्पूर्ण रामायण चित्रों द्वारा
अयोध्या
राम जन्म
राम , लक्ष्मण , भरत , शत्रुघ्न
गुरुकुल गए हे चारो भाई
और तारा देवी अहिल्या को
फिर शिव धनुष तो तोडा और देवी सीता को जीता
श्री राम विवाह - सीता स्वयंबर माता पिता की मानी आज्ञा गए वनवास - श्री राम,लक्ष्मण और सीता
श्री राम - भरत मिलन
मिले भरत से दोनों भाई
चरण पादुका भरत ने पाई
पतिव्रता थी देवी अनुसुइया जिसने दिए माता को वस्त्र
वह वस्त्र थे जो न कभी फटे और न ही कभी मेले हुए
पंचवटी का द्रश्य मनोहर
रावण ने किया छल
माता सीता का धोके हरण
शबरी ने दिए प्रभु को मीठे बेर- भक्ति प्रेम
फिर हनुमान और सुग्रीव से मिले प्रभु
सुग्रीव को दिलाया राज्य करा बाली वध
माता सीता की खोज कर वीर हनुमान ने किया लंका दहन
फिर श्री राम ने की शिव आराधना और समुद्र से मांगा मार्ग
नल और नील दो भाई द्वारा
भगवन राम नाम के पत्थरो से बनाया सेतु
जब लक्ष्मण के मूर्छित होने पर
हनुमत लाये संजीवनी
और हुआ बुराई का अंत - रावन दहन
हनुमत तुम भारत समान
फिर हुआ राज तिलक
महारानी सीता सहित राजा राम सिंघासन पर
अब वन में भेजी सीता जहा हुए लव - कुश दो भ्राता
माता ने दी और परीक्षा
अब थकी हुई माँ सीता समाई धरती में
अब प्रभु पधारे वैकुंठ धाम - बोलो जय जय सिया राम
Wednesday 24 August, 2011
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