जय महेश ……
सर्वप्रथम भगवान श्री महेश को नमन करता हु ……..
आज धाकड़ माहेश्वरी समाज में बहुत से लोग है जो नहीं जानते की माहेश्वरी समाज से धाकड़ माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति कैसे हुई ……
हम धाकड़ माहेश्वरी हे हम सभी को पता होना चाहिए की धाकड़ माहेश्वरी का इतिहास क्या हैं …..?
इतिहास साक्षी हे की सेकड़ो वर्ष पूर्व राजस्थान के डीडवाना के राजा द्वारा जब हमारा स्वाभिमान आहत हुआ तो हमने वह राज्य ही छोड़ दिया और गुजरात के धाकगड़ व फिर मध्य भारत के कई स्थानों पर पड़ाव डाला ……….
श्री माहेश्वरी वंशउत्पत्ति
गाव खड़ेला में खड्गल सेन राजा राज्य करता था l इसके राज्य में सारी प्रजा सुख और शांती से रहती थी l राजा धर्मावतार और प्रजाप्रेमी था , परन्तु राजा का कोई पुत्र नहीं था l राजा ने मंत्रियो से परामर्श कर पुत्रेस्ठी यज्ञ कराया l ऋषियों ने आशीर्वाद दिया और साथ-साथ यह भी कहा की तुम्हारा पुत्र बहुत पराक्रमी और चक्रवर्ती होगा पर उसे 16 साल की उम्र तक उत्तर दिशा की ओर न जाने देना l राजा ने पुत्र जन्म उत्सव बहुत ही हर्ष उल्लास से मनाया l ज्योतिषियों ने उसका नाम सुजानसेन रखा l सुजान सेन बहुत ही प्रखर बुद्धि का व समझदार निकला , थोड़े ही समय में वह विद्या और शास्त्र विद्या में आगे बड़ने लगा l
देवयोग से जैन मुनि खड़ेला नगर आए और सुजान कुवर ने जैन धर्म की शिक्षा लेकर उसका प्रचार प्रसार शुरू कर दिया l शिव व वैष्णव मंदिर तुडवा कर जैन मंदिर बनवाए , इससे सरे राज्य में जैन धर्मं का बोलबाला हो गया l
एक दिन राजकुवर 72 उमरावो को लेकर शिकार करने जंगल में उत्तर दिशा की और ही गया l सूर्य कुंड के पास जाकर देखा की वहा 6 ऋषि यज्ञ कर रहे थे ,वेद ध्वनि बोल रहे थे ,यह देख वह आग बगुला हो गया और क्रोधित होकर बोला इस दिशा में मुनि यज्ञ करते हे इसलिए पिताजी मुझे इधर आने से रोकते थे l उसी समय उमरावों को आदेश दिया की यज्ञ विध्वंस कर दो और यज्ञ सामग्री नस्ट कर दो l
इससे ऋषि भी क्रोध में आ गए और उन्होंने श्राप दिया की सब पत्थर बन जाओ l श्राप देते ही राजकुवर सहित 72 उमराव पत्थर बन गए
जब यह समाचर राजा खड्गल सेन ने सुना तो अपने प्राण तज दिए l रजा के साथ 16 रानिया सती हुई
राजकुवर की कुवरानी चन्द्रावती उमरावों की स्त्रियों को साथ लेकर ऋषियो की शरण में गई और श्राप वापस लेने की विनती की तब ऋषियो ने उन्हें बताया की हम श्राप दे चुके हे तुम भगवान गोरीशंकर की आराधना करो l यहाँ निकट ही एक गुफा हे जहा जाकर भगवान महेश का अष्टाक्षर मंत्र का जाप करो l भगवान की कृपा से वह पुनः शुद्ध बुद्धि व चेतन्य हो जायेंगे l राजकुवारानी सारी स्त्रियों सहित गुफा में गई और तपस्या में लीन हो गई l
भगवान महेश उनकी तपस्या से प्रस्सन होकर वहा आये ,पार्वती जी ने इन जडत्व मूर्तियों के बारे में भगवान से चर्चा आरम्भ की तो राज्कुवरानी ने आकर पार्वती जी के चरणों में प्रणाम किया l पार्वतीजी ने आशीर्वाद दिया की सोभाग्यबती हो , तुम्हारे पति का मुख देखो l इस पर राज्कुवरानी ने कहा हमारे पति तो ऋषियों के श्राप से पत्थरवत हो गए है अतः आप इनका श्राप मोचन करो l पार्वतीजी ने भगवान से प्रार्थना की और फिर भगवान महेश ने उन्हें चेतन में ला दिया l चेतन अवस्था में आते ही उन्होंने पार्वती -महेश को घेर लिया l इस पर भगवान महेश ने कहा छमावान बनो और छत्रित्व छोड़ कर वैश्य वर्ण धारण करो l 72 उमरावों ने इसे स्वीकार किया पर हाथो से हथिहार नहीं छुटे l इस पर भगवान महेश ने कहा की सूर्य कुंड में स्नान करो ऐसा करते ही उनके हथिहार पानी में गल गए उसी दिन से लोहा गल (लोहागर) हो गया l स्नान कर भगवान महेश से प्रार्थ्रना करने लगे
फिर भगवान महेश ने कहा की आज से तुम्हारी जाती पर मेरी छाप रहेगी यानि “माहेश्वरी ’’ कहलाओगे और तुम व्यापार करो इसमें फुलोगे -फलोगे l
अब राजकुवर व उमरावों ने स्त्रियों को स्वीकार नहीं किया कहा की हम तो वैश्य बन गए है पर ये अभी छतरानिया हे हमारा पुनर्जन्म हो चूका हे हम इन्हें कैसे स्वीकार करे l तब माता पार्वती ने कहा तुम सभी स्त्री -पुरुष हमारी परिक्रमा करो जो जिसकी पत्नी हे अपने आप गठबंधन हो जायेगा l इसपर सब ने परिक्रमा की l उस दिन से महेश्वरी बनने की बात याद रहे इसलिए चार फेरे बाहर के लिए जाते हे l
जिस दिन भगवान महेश ने वरदान दिया उस दिन युधिष्टिर संवत 9 जेस्ट शुक्ल नवमी थी l तभी से माहेश्वरी समाज आज तक “ महेश नवमी ’’ का त्यौहार बहुत धूम धाम से मनाता आ रहा हे …..
ऋषियों ने आकर भगवान से अनुग्रह किया की प्रभु इन्होने हमारे यज्ञ को विध्वंस किया और आपने इन्हें श्राप मोचन कर दिया इस पर भनवान ने कहा आप बाहर यजमान बनालो ये तुम्हे गुरु मानेंगे हर समय यथा शक्ति द्रव्य देते रहेंगे l
फिर सुजान कुवर को कहा की तुम इनकी वंशावली रखो ये तुम्हे अपना जागा मानेंगे l
जो 72 उमराव थे उनके नाम पर एक -एक जाती बनी जो 72 खाप कहलाई l फिर एक -एक खाप में कई नख हो गए जो कम के कारण गाव व बुजुर्गो के नाम बन गए हे l
NOTE :- यह तथ्य मेने धाकड़ माहेश्वरी समाज की ही पुरानी बुक में से बताया हे l यदि किसी समाज बंधू को इसमें त्रुटी दिखाई पड़ती हे तो में छमा चाहता हु और हा please मुझे e-mail करे उसमे सही जानकारी लिख दे जिससे में इसे सुधार सकू …
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